मैं कुछ कहूं या न कहूं, पर बात हो जाए तो
ये मौन ही हमारा अगर “संवाद” बन जाए तो..
उलझे-सुलझे रहतें हैं अपनी ही उलझनों में हम
ये उलझनें ही “मिलने के आसार” हो जाएं तो..
न जानें क्यों अपनों में भी चुप-चुप ही रहे मगर
किसी एक अजनबी पे ही एतबार हो जाए तो..
नहीं पता कि क्या खोजने को निकले घर से हम
ये “रास्ते” ही मंजिलों की पहचान बन जाए तो..
किसी से कुछ कहूं या न कहूं, हाल-ए-दिल मगर
बस एक तेरा नाम ही राज़ उजगार कर जाए तो..
संजोए कितने ही सपनें और ये अनगिनत उम्मीदें
मगर किस्से तेरे-मेरे ही एक किताब बन जाएं तो..
“कसक” सी इक दिल में रह जाती है हर बार ही
फिर भी खूबसूरत अगर ये “इंतज़ार” हो जाए तो..
न कहना फिर कभी कि जिंदगी यूं ही “बीत” गई
मनसी, ये अंत ही अगर “शुरुआत” बन जाए तो !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
उत्तर प्रदेश , मेरठ