सुंदर सी धरती पर नेक, भले, प्यारे प्यारे लोग रहते थे .उन्हीं के बीच न जाने कहाँ से वह आया गया.
उसने नरम नरम ज़मीन देखी.उसमें उसने एक बीज बोया. एक पौधा निकला.उसने उसे सींचा. ख़ूब देखभाल की. वह पेड़ बना. फूल आये. लोग आकर्षित हुए. फूल फल बने.फलों को लोगों ने चक्खा .मज़ा अलग लगा. जिज्ञासा बढ़ी.लोगों ने खाना शुरू किया और फिर सब कुछ बदलने लगा. लोगों की नज़रें ,लोगों की ज़बान ,लोगों की बोली ,लोगों के चेहरे,लोगों की हरकतें ,लोगों का स्वभाव और देखते देखते सुंदर सी धरती का रंग बदल गया.सब पागल हो गए. एक दूसरे को नोचने लगे. सब कुछ तबाह हो गया.बर्बाद हो गया.
कोई न बचा.पेड़ भी नहीं.धरती भी नहीं.स्वयं…वह भी नहीं.
जाफ़र मेहदी जाफ़री
178/247 गोलागंजलखनऊ