” मुरझाया फूल”

 उमर ढल गई,बीती जाए जवानी

 न अब तू है राजा, न मैं कोई रानी,

 सफर पूरा कर लें नदी की जो लहरें

 नहीं जोश होता,न कोई रवानी।

 सुगंधित सुमन सारे मधुकर दिवाने

 हुए कैद स्वयं, प्रेम शैया सजाने

 शिथिल रैन हो, चैन कलियाँ लुटा दें

 भ्रमर भानु संग ढूँढे दूजे ठिकाने।

 उदयभानु ऊर्जा बिछा दें भुवन में

 दिवस परगमन,जाए सिमटा वसन में

 मदन क्रीड़ा राकेश करते नई नित

 निशा नव कलानिधि बसा लें नयन में।

 सदा से रहा है नियम सृष्टि का ये

 कलेवर गढ़े नए,विगत को भुला दे 

 कोई फूल मुरझा गया जो चमन का

 मयुख पर उसे कैसे अपने सजा लें।

 महिमा तिवारी

 रामपुर कारखाना, देवरिया।