तुम बिन अंतस व्याकुल ऐसे
मछली आकुल जल बिन जैसे
जैसे वसुधा नीरव रवि बिन
जैसे साहित्य नीरस कवि बिन।
तुम बिन मैं हूँ खोई-खोई
जैसे शांत सरोवर कोई
जैसे तन्हा अंतर कोई
जैसे वियोग में अँखियाँ रोई।
तुम बिन मैं अपूर्ण हूँ साथी
जैसे दीपक बिन है बाती
जैसे इंदु बिन रात अधूरी
जैसे शब्द बिन बात अधूरी।
जैसे स्वप्न बिन नयन अधूरा
जैसे प्रिय बिन मिलन अधूरा
जैसे देव बिन दर्शन अधूरा
जैसे जल बिन वर्षण अधूरा।
तुम बिन असंभव है साथी जीना
जैसे साँस बिन जीवन असंभव
जैसे लगन बिन काज असंभव
जैसे आस्था बिन सुमिरन असम्भव।
अधूरी हैं तुम बिन मेरे इच्छाएँ
जैसे साँस बिन देह अधूरी
जैसे भाव बिन कविता अधूरी
जैसे सागर बिन सरिता अधूरी।
तुम बिन मेरा अस्तित्व है ऐसे
जैसे शाखा से टूटा हुआ फूल
जैसे पगों में बिंधा कोई शूल
जैसे विछोह सहता हुआ हंस।
तुम बिन मैं हूँ बेकल ऐसे
जैसे शर शैय्या पर जीवन
जैसे तितली के भीग गए हों पर
जैसे सदियों से वीराना खँडहर।
तुम बिन रिक्तियाँ हैं मन में
जैसे नीड़ बिन भटकता पंछी
जैसे सुगंध रहित कोई उपवन
जैसे बूँद को तरसता सावन।
प्रीति चौधरी “मनोरमा”
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश