मुरझाए फूल की व्यथा

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जब खिला था मैं चमन में फैला रंग ही रंग

महका उपवन गमक फैले तितली के कई रंग

चुनने को पराग कण भ्रमर करते मुझे तंग

माली देखते खुश हुआ बगिया में फैली सुगंध।

एक रजनी गतिशील हुई जब मेरा कली रूप

आने को यौवन मेरा चहुं दिशि छाए मकरंद,

सुंदरता लखि लखि मेरी मैं भी फूला न समाऊं

साजन हाथों मैं फिरूं गुन-गुन गावत अलि छंद।

देख जवानी की रवानी तोड़ा डाल से छूटा उपवन

छोड़कर उपवन में चला अपने साथियों संग,

बिका हाट बाजार में मंदिर और समाधि स्थल

गूंथा जाऊं हार मालाओं में मैं धागे के संग।

चढ़ूं ईश चरणन में भक्ति रस में रंग जाऊं

पड़ूं वर दुल्हन के गले में मिलन के गीत सुनाऊं,

पड़ूं समाधि या शव पर भरूं सिसकियां अश्रु धार बहाऊं

भाग्य मेरा तब चमके जब वीरों के पथ पर डाला जाऊं।

ये सब जवानी की रवानी पर व्यथा सुनाऊं बूढ़े तन की

गुलदस्ते से हुआ गायब फेंका दुल्हन ने वेणी से,

एक निशा ने शिथिल बनाया मुरझाया ये गुल वंदन

भ्रमर और तितली सब भागे नहीं मिला कोई उपवन।

विगत को बिसरा देना सृष्टि का नियम पुराना

प्रकटे भानू फैले मयूख भ्रमर तितली सब ढूंढे नया ठिकाना,

मुरझाया जो फूल चमन में उसका नहीं कोई बहाना

देखे ‘अलका’ रीत जगत नव कलेवर में नया जमाना।

अलका गुप्ता ‘प्रियदर्शिनी’

लखनऊ उत्तर प्रदेश।

मो.7408160607