याद है जब साहेब ने
रसीद की थी दो चार थप्पड़े
उस मीडियाकर्मी पर
जो बाद में नेता भी बना
तो आसमान टूट गया था
सारी मीडिया मानो मातम मना रही थी
लेकिन वह इस बात की शुरुआत थी
कि जिस समाज को तुम लतियाते रहे
तोड़कर मानसिक गुलामी की जंजीरें
तुम्हें थप्पड़ रसीद करने लगा।
सदियों से जिसे तुमने इंसान ना समझा
और भाषा पर भाषण देने वालों
कभी ध्यान देना अपनी भाषा की मर्यादा पर
समाज के हाशिए के लोगों के लिए
कौन कौन से शब्द है तुम्हारे दिमाग में
जिन शब्दों को स्थानांतरित किए पीढ़ी दर पीढ़ी
संभालें रखते हो प्रयोग के लिए
आज मांझी के बोल चुभ गए तीर की तरह
तो, सोचों तुम्हारे शब्द क्या फूल बांटते हैं?
ना जाने कब से तुम गरियाते रहे जिस समाज को
और आज भी गरियाते ही हो
जब आज वह गरिया दिया तुम्हें तो
जीभ काटने का फरमान जारी कर दिए?
छूत लगती है भोजनमाता के बनाए भोजन से
तो यह छूत ना जाने कितने सौ साल से लगी है तुम्हें
क्योंकि खेतों में रोपाई से कटाई तक
खलिहान में दवनी से ओसाई तक
जिनके हाथ लगे है जरा ध्यान से देखना
फिर यह तय करना कि भोजन की छूत क्या होती है?
यदि तुम नहीं खाते हमारे बनाए भोजन
तो यह भी बेहतर है कि
तुम्हारे भोजन का बहिष्कार हम भी करें।
— संतोष पटेल
नई दिल्ली