इस कलम ने ही कभी हमें दिया सहारा था
ये दिल टूट के किया कभी हमसे किनारा था
टूट बिखरे पड़े थे हम तो कभी दर्द ए राह में
इस कलम ने जज़्बात संग मिल हमें निखारा है।।
इस कलम ने जज़्बात संग मिल हमें निखारा है।।२।।
गूंजी थी कभी मेरी चित्कार इन घनी वादियों में
पर हर तरफ मिला हमें सिर्फ अंधेरा सन्नाटा था
आंसूओं ने यादों संग मिल हमको बस जब घेरा
तब कलम ने ही अंधेरे में मेरा हाथ सच थामा था।।
इस कलम ने जज़्बात संग मिल हमें निखारा है।।२।।
समेट न पा रहे थे जब खुद के बिखरे टुकड़े को
सुखा न पा रहे थे जब हम अपने आंसूओं को
उलझ गये थे यादों के घने अंधेरों के धागों में
इस कलम ने सुलझा हमें तब दिया सहारा था।।
इस कलम ने जज़्बात संग मिल हमें निखारा है।।२।।
आज कलम की दोस्ती पर फक्र हम करते हैं
आज आंखों से मेरी खुशियों के आंसूं झरते हैं
आज भी यादों को मेरी कलम शब्दों में सजाती
पर दम़ हम दिल में आज सच खुशियों का भरते हैं।।
इस कलम ने जज़्बात संग मिल हमें निखारा है।।२।।
वीना आडवानी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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