अभिमन्यु अभी भी युद्धरत है

जिंदा है वह,

चिलचिलाती धूप  के सफर में,

पसीने की बूंदें अच्छी लगने लगी,

भयानक तपन में भी ठंडक  थी,

अपने घाव, कष्ट सब से लहू रिसनें लगा ,

मवाद की गंध से सर चकराने लगा,

उसे बूढ़ी मां का  बिस्तर पर सौंच करना

याद आया,

बड़े बेटे का पोलियो ग्रस्त घिसटता पैर,

एक विधवा, दो दो जवान बहनों क

यौवन के सपने,

शराबी भाई का घर में तांडव करना और,

सांवली, भोली, पत्नी के दिन रात लोगों के घर,

बर्तन मांजते  हाथ याद आए,

उसे याद आया

अभिमन्यु गर्भ  मैं सीख आया था,

चक्रव्यूह में घुसना ,

पर तोड़कर नहीं निकल पाया,

कृष्ण का अर्जुन को उपदेश,

वह  अभिमन्यु और अर्जुन

के बीच का रास्ता चुनना चाह रहा था,

भयानक तपन में घाव और रक्त,

ठंडक दे पा रहे थे,

अपने लिए सोच पाना  नामुमकिन था,

निकाली गई नौकरी के चिथड़े

बटोर कर वापस पैदल पैदल जाने लगा,

उसे लगा कृष्ण का उपदेश अभी खत्म नहीं हुआ है,

अभिमन्यु अभी भी युद्धरत है,

अश्वत्थामा अभी मारा नहीं गया,

महाभारत का कोलाहल

कानों में  सनसना  रहा था,

यौवन से लबालब बहनों पर

मकान मालिक की गिद्ध दृष्टि याद आई,

भाई का घर के बर्तन बेचकर शराब पीना याद आया,

उसे अब जूतों में लगी अन्दर की 

कीलों से पैरों पर रिसता  लहू,

अब मजा और आनंद देने लगे थे ,

उसे घर के दर्द के बदले पैरों से 

निकलते रक्त से ज्यादा  सुकून मिलने लगा,

अब संजय धृतराष्ट्र को पूरी खबर सुना रहा था,

दुर्योधन गदा लिए हुए दिखाई देने लगा,

शरीर तप  रहा था,

घावों से रक्त का निकलना अनवरत था|

नीम की घनी छांव व्यर्थ थी ,

छांव भी अब कष्ट देने लगी,

चेतना शून्य होने लगी,

उसे लगा महाभारत में पांडव हार चुके थे,

भीषण नरसंहार, सब तरफ हाहाकार मचा हुआ है,

अभिमन्यु का शरीर घावों से अटा पड़ा था,

कृष्ण उपदेश देकर मौन थे,

धृतराष्ट्र को सब कुछ दिखाई देने लगा,

चिलचिलाती धूप में उसके और लाल सूरज

के बीच,

उसका पोलियो ग्रस्त बच्चा आ खड़ा था,

नहीं अब शायद बहुत देर हो चुकी, 

फिर भी जिन्दा है वह|

संजीव ठाकुर,अन्तराष्ट्रीय कवि,चौबे कालोनी,रायपुर,छ.ग.

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