व्यथित हुआ हिय फिर मेरा ,
रिसे पुराने सब घाव ।
मोह पाश का यह खेला ,
जिस कारण पड़ा दुराव ।।
किसी पाश के बंधन में ,
मत कँसने देना डोर ।
बंधन सारे झूठे है ,
वह पीड़ा देते घोर ।।
किसी हृदय के कोने में ,
रह जाते जो भी भाव ।
मिला समय तो ताजा हो ,
वो करता वहाँ रिसाव ।।
दर्द सभी ऊपर आते ,
बहती अशुवन की धार ।
फिर पीड़ा से आकुल मन ,
कभी न कर पाता प्यार ।।
कहे व्यंजना इस जग में ,
कभी न करना विश्वास ।
सिर्फ ईश तेरे होते ,
उनकी रखना बस आस ।।
व्यंजना आनंद ” मिथ्या “
बेतिया, बिहार