बहुत ही चंचलता से थी फुदक रही…
जब मेरी हुई उससे मुलाकात
मैंने पूछा उससे बस एक सवाल…
हे चिड़िया क्या है तेरी जाति ?
और कहां है तेरा घर….?
रहती हो कहां आजकल
क्यों दिखती हो बहुत कम ….?
चिड़िया ने बहुत ही सरलता से कहा
जातियां तो केवल तुम मनुष्यों ने बनाई
मैं तो एक पंछी हूं और यही पहचान है पाई…
तुम मानव जिस घर में रहते
उसी के लिए लड़ते – झगड़ते…
हम पंछी इस खुले आसमां को ही
अपना घर समझते…
हम नहीं रखते आपस में भेदभाव
हम तो साथ एक डाली पे भी रहते….
कारण तुम्हारे ही संख्या हमारी है लुप्त हो रही
ये मानव जाति अपना ही नहीं
औरों का भी घर है उजाड़ रही…..
सुनकर चिड़िया की बातें
मेरी नजरें थी झुक गई….
खुद के मानव होने पर
थी शर्म सी आ रही….
आता रहा मन में बस एक ख्याल
जब पूछे कोई हमसे ये सवाल….
क्या है तेरी जाति ?
कहां है तेरा घर…?
तो काश हर मानव गर्व से कहता
मानव मेरी जाति…!
पूरा हिंदुस्तान मेरा घर…!!!!
बरखा राज