समय की विशालता को
स्पष्टित करते हुए
एक घड़ी हर रोज
बंधी रहती है
मेरी कलाई पर
और मैं
बार-बार वक्त
देखने के लिए
उसी घड़ी को देखती हूँ
उसके चेहरे में अंकित रेखाएं
मेरी ओर इशारा करते हुए
समाज के प्रति मेरी जिम्मेदारी
और कर्तव्यों का एक
बड़ा -सा कपाट खोल देती है
पूर्ण रूप से स्पष्ठ दिखाई देता है
जैसे-
श्री कृष्ण ने यशोदा मैया को
अपने मुँह में
पुरा ब्रह्मांड दिखा दिया था।
घड़ी
संसार की उन तमाम
हर्ष – विषाद
दर्द – खुशी
जय – पराजय की साक्षी है
लेकिन वो
ना तो कभी हँसती है
ना तो कभी रोती है
हमेशा निष्पक्ष
हमेशा तटस्थ
अविराम है उसकी गति
अर्थहीन अहंकार की दौड़ में भी
शामिल नही होती घड़ी
समय क्या है?
दायित्व क्या है?
कर्तव्य क्या है ?
इन सभी का
हर एक अध्याय दिखा
देने वाली घड़ी
मेरी फ्रेंड, फिलोसोफर
और गाइड है।
इतिहास पलटने पर
मालुम होता है
जिसने समय को न समझा
उसके हर पराक्रम का दर्प चूर हुआ
जैसे महान फ्रांन्सिसी योद्धा,
रणनीतिकार नेपोलियन ने
‘वाटरलु’ का युद्ध हारा था।
● अनुपमा कट्टेल
दीमापुर (नागालैण्ड)