बहरों की सत्ता

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तवा गरम है –

रोटियां सेंकिए ।

आएंगे आपके द्वार –

ये वोट मांगने ।

जीत के बाद ये  –

सूली पे टांगने ।

हवा गरम है –

धूप मत फेंकिए ।

पैरों से रोंदेंगे ये –

मुद्दों की दूब ।

दिन में दिखाएंगे –

ये स्वप्न खूब ।

दिवा वहम है –

तारों में बैठिए ।

गूंगों की बस्तियां –

बहरों की सत्ता है ।

फागुन के दिन हैं –

शेष कहां पत्ता है ।

नवा भरम है –

जूना न छोड़िए ।

चकाचौंध में आपको –

देखने न कुछ देंगे ।

वादे तो बस हवा हैं ,

उनसे पेट भर देंगे ।

सबा कुंकुम है –

हृदय में पैठिए ।

+ अशोक ‘ आनन ‘ +

   मक्सी