मनोरम हैं यहाँ दृश्य सारे
खूबसूरत हैं सभी नज़ारे
कोई तुमसा नहीं जहाँ में
अंतर्मन मेरा यही उचारे।
सुरमई सा है यह गगन
महकी महकी है पवन
कोई तुमसा नहीं जहाँ में
तुमसे लागी मन की लगन।
रुपहली सी है यह रात
तारिकाओं की ज्यों बारात
कोई तुमसा नहीं जहाँ में
मधुरिम तुम्हारी हर बात।
स्वप्निल जीवन की भोर
अनुपम जीवन चहुँओर
कोई तुमसा नहीं जहाँ में
तुम ही हो मेरे चितचोर।
इंद्रधनुषी हैं स्वप्न सारे
निर्मल नदिया के धारे
कोई तुमसा नहीं जहाँ में
हर क्षण मन यह विचारे।
रंगबिरंगे हैं देखो उपवन
महकते हैं जैसे मधुबन
कोई तुमसा नहीं जहाँ में
तुमको ही चाहे मेरा मन।
सरस है फूलों की नर्मी
लगाव में अनल सी गर्मी
कोई तुमसा नहीं जहाँ में
तुम हो स्वामी,मैं हूँ कर्मी।
अमूल्य साँसों की माला
अद्भुद है जीवन शाला
कोई तुमसा नहीं जहाँ में
तुम ही प्रिय सबसे आला।
प्रीति चौधरी “मनोरमा”
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश