हृदय से निकली झंकार भरी धुन,
धूप शीत की गुनगुन गुनगुन,
तुमको क्या बतलाऊं साथी,
हिलकोरे हिंचकी की तू सुन।
चंचल मन व्याकुल होता जब,
मस्त पवन की हो यह ठिठुरन,
सूरज भी अठखेली करता,
मंद सुंघंध भरा यह उपवन।
सरसों की जब हो पीली चादर,
व्योम घटा का नीला आंचल,
नयनों की भाषा तुम पढ़ना,
मीत मेरे तुम चुप ही रहना।
इन गीतों के बोल भरे धुन,
कैसे अपने आप सुनाऊं,
उर में बसा हुआ यह सुंदर,
दृश्य मैं कैसे तुम्हें दिखाऊं।
पवन यही तुमको छू आए,
मनमोहक एहसास दिलाएं,
तुमको भी उतनी ही पीड़ा,
हरपल मुझको यही बताएं।
प्रियदर्शिनी तिवारी
प्रयागराज