नव्य शैशव हुए कितने वीरान

प्लव – प्लव – प्लावित माया

अब इस पुलिन की क्या कसूर ?

जग – जग हुँकार अब भी त्राण

कौन सुने इन दुर्दिन की व्यथाएँ ?

कहर उठी उर में चुभती भी कोमल हृदय में

लहर दे मारती स्वप्न में विकलता भी क्रदन करती

बहुरि अकेला भव में , दे अन्तिम कौन सन्देश ?

आशाएँ टूट पड़ी जैसे पतझड़ के तृण यहाँ

दे बोल उठते सब कैसे हो तू प्रिय / प्रियवर ?

मै सहचर तेरा सदा अगर एक हाँक दे दे मूझे

सच बताऊँ एक बार तू खंगाल दे उस उर को

बात भी बदल जाएगी जो दिए वचन मुख को

मुख – मुख में छिपा अग्नि के ज्वाल अंगार

जो दे विष उगल , हो जाएगा जग हाहाकार

दर्प हनन शेष नहीं , दे रही किस करुण कहानी को ?

मत पूछ दर्द – अग्नि हो जिसका , आँशू की गिरे बौछार घनघोर

दिव्य प्रज्वलित नहीं उठते उमंग में , जो दबे पाँव पसार

भरती एक बार जोश उत्साह , फिर मिटी , वहीं जगहार

फूल बरसे या चन्द्रहास , कौन कहे फिर कोमल या तेज धार

लौ दीपक में भी कहाँ वो ढ़ूढ़ती प्रज्वलित ज्वाल अंगार ?

निःशेष नहीं बचा , कहाँ वो कण भी जिसे ढ़ूढ़ते पन्थ न जाएँ भूल ?

कँटीली काँटो में भी कहाँ , देखे पुष्पित पुष्प खिले अब राहों में ?

राही राहों में देखें उपदंश , भ्रष्ट , मिथ्या , दम्भ भरा संसार

कहाँ जाऊँ ? इस भव छोड़ अंतर्मन के भग्नहृदय में घनघोर कहर प्रबल है ।

वरुण सिंह गौतम

रतनपुर बेगूसराय बिहार