नेता बांट रहे चौपतिय आ।
बैठे बांच रही रमपतिया ।।
डेढ़ करोड़ बनाए हैं घर ।
और उज्ज्वला पहुंची दर दर।
बढ़ी किसानों की सम पतिया।।
मेरी टूटी पड़ी छपरिया ।।
बांच रही बैठे रमपतिया ।।
नेता जी का पढ़ती भाषण।
जन जन तक पहुंचाया राशन।
भूख प्यास से मरा विपतिया।।
रोती है बैठे शिव सतिया।।
बांच रही बैठे रमपतिया ।।
सच मुच हैं क्या बातें पक्की?
हुई देश की बहुत तरक्की ?
जन गण मन गाए परवतिया ।
कितनी अच्छी है चौपतिता ।।
पढ़ कर सुना रही धनपतिय्या ।।
शिवचरण चौहान
कानपुर