अपनों से हुआ उपेक्षित 

अपनों से हुआ उपेक्षित 

इंतजार मैं करता रहता ,

सुबह, दोपहर और शाम ।

अब नही कोई चिट्ठी आती 

और ना आता पैगाम । ।

 कोई याद ना करता मुझको ,

 और ना कोई फ़ोन करे ।

सूखा पत्ता हूँ उपवन का ,

और पत्ते है हरे भरे ।।

नन्हे नन्हे प्यारे बच्चे ,

है उपवन के फूल ।

मैं भी उपवन का सदस्य हूँ ,

लोग  गए सब भूल ।।

तीव्र हवा  का झोंका मुझको ,

जाने कब ले जाएगा ।

मेरी भी सुध ले लो कोई ,

फिर पीछे पछताएगा ।।

मेरा जीवन साथी पत्ता ,

उड़कर जाने कहाँ गया ।

मैं ढूंढ़ ना पाया उसको ,

मेरा उपवन छोड़ गया ।।

सभी रंगे हैं अपने रंग में ,

मैं हुआ बेरंग ।

कमरा काल कोठरी लगता

हूँ बहुत बेचैन ।।

डॉक्टर कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव

 राव गंज कालपी जालौन 

उत्तर प्रदेश 28 5204