एक उम्र चुरा लाऊँ

कभी कभी जी करता हैं

फूलों की खुशबू चुरा लाऊँ।

आसमां की घटाओं से

पानी को चुरा लाऊँ।

तोड़ लूँ सितारें गगन के

चाँद की चाँदनी चुरा लाऊँ।

ये सूरज जो खेलता हैं

रश्मियों के संग,भोर की

इसकी लालिमा चुरा लाऊँ।

संगीत के सुरों का एक

स्वर चुरा लाऊँ।

जहाँ कहीं भी मिले खुशियाँ

उन खुशियों को चुरा लाऊँ।

चुरा लाऊँ आँसू

किसी और की आँखों के

किसी की भूख चुरा लाऊँ

किसी के गम चुरा लाऊँ

एक दिन के हजार लम्हों से

बस तेरा एक लम्हा चुरा लाऊँ।

चुपके से आऊँ तेरे सपनों में

तेरा एक सपना चुरा लाऊँ।

कभी कभी जी करता हैं

तेरे संग एक उम्र चुरा लाऊँ।

-गरिमा राकेश गौत्तम

कोटा,राजस्थान