आओ ना मनमोहन

भर लो अंक में मोहन 

तड़पती राधा विरहन

निष्ठुर बन कर तुम बैठे

क्यूं आते नहीं मधुबन

हुई अब पथरीली नयना 

बरसती आह की झरना 

चले आओ मेरे गिरधर 

समा जाओ मनमोहना

हँसती है  गोपिया सारी

कहां गये तेरे कान्हा ?

सपथ खाए बैठे अंगना

भुलाए यशोदा के ललना 

करो ना देर अब मोहन 

बीत जाए ना अब रैना

हुआ अब मन बड़ा भारी 

चले आओ ना गिरधारी

पूछती है कदंब की डारी

संग में काली यमुना न्यारी 

बताऊँ कैसे अब मोहन 

हुई अब रूकमिणी नारी।

रानी प्रियंका वल्लरी

बहादुरगढ़ हरियाणा