मिट्टी से निर्मित हुए,
मिट्टी में मिल जाना है,
धन वैभव सब त्याग,
इक पल में उड़ जाना है,
ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा,
चंद सांसों का है भरोसा,
मोह माया से तोड़ के नाता,
एक दिन सबको जाना है,
सदकर्म और नेक दिली है
यही हमारी पुंजी,
मुठ्ठी बाँध के आए थे,
हाथ खोल के जाना है,
कर लो थोड़ा दया धरम,
बांट लो सबके दुख दरद,
नहीं कुछ है इसके सिवा,
बस नाम यही रह जाना है,
लोभ मोह से होके परे,
हर दिल में जगह बनाना है,
सही मार्ग पर चलकर प्यारे,
खुशियों के दीप जलाना है।
सुनीता सिंह ‘सरोवर’
देवरिया-उत्तर प्रदेश