चिट्टियाँ तो बोलती हैं

चिट्ठियाँ तो बोलती हैं।राज दिल के खोलती हैं।

परदेसी के सब हाल लिख डाले पाती।

दूरी अपनों से अब तो सही नहीं जाती।

अंतर्मन की सारी भावनाएं डोलती हैं।

चिट्ठियाँ तो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

सावन में जब बदरा उमड़ घुमड़ बरसे।

पिया मिलन को गोरी का हिया तरसे ।

बिरहन के पीड़ित हृदय को टटोलती है।

चिट्टियाँ तो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

टेसू ने काली पगड़ी बांधी है मखमल की।

कौन समझे वेदना विरहन मन घायल की ।

फागुन में प्रीत रंग दिलों में घोलती है ।

चिट्टियाँ तो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

 चिट्ठियां तो बोलती हैं ।राज दिल के खोलती हैं।

प्रेमलता उपाध्याय स्नेह 

दमोह मध्य प्रदेश