ग़ज़ल

हाथ आगे है बढ़ाये कौन !

आज गिरते को उठाये कौन !!

साँझ भी दिन को निगलती रोज ,

याद दिनकर को दिलाये कौन !

आँसुओं में भीगती से बैन ,

मौन रहकर भी सताये कौन !

राह में भटके हुए हैं लोग ,

यार रूठों को मनाये कौन !

प्यार के कुछ बोल हैं आजाद ,

फिर लबों पर गुनगुनाये कौन !

झूँठ तो करता सदा मनुहार ,

साँच को फिर आजमाए कौन !

नेक नीयत पर करें संदेह ,

” बिरज ” अब हमको बचाये कौन !!

बृज व्यास

शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

9425428598