रोज नई आशाएं जगती ,
अंत नहीं कोई है !!
दर्द अगर तो , दिन पहाड़ से
रातें नींद उड़ाये !
लड़ने वाला लड़े रात दिन ,
चैन नहीं वह पाये !
थकी थकी सी लगे जिंदगी ,
अँखियाँ जब रोई हैं !!
कौन पराया , अपना जानें ,
अपने हित सब साधे !
गिरते पड़ते , कौन सँभाले ,
कौन करे दुख आधे !
वही फसल काटा करते हैं ,
जो हमने बोई है !!
बरखा बरसे , हरा भरा सब ,
ठूंठ हरे हो जाते !
आशाएं गर सींची हमने ,
नवजीवन को पाते !
आँगन आँगन में उम्मीदें ,
हम सबने बोई हैं !!
नित जागे नवीन इच्छाएं ,
सब हैं दौड़ लगाते !
जैसे जैसे होती पूरी ,
फिर आगे को धाते !
चाह भरोसा पूरक हैं तो ,
हम पालें दोई हैं !!
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
9425428598