अंधे का पुत्र अंधा ही होता है कह देना द्रुपद सुता यह कैसी मर्यादा थी।
संबंधों में देवी कल्याणी बनकर भी कड़वाहट शब्दों में क्यों ज्यादा थी।।
नारी की गरिमा द्यूत मे लगा दांव धार्मिक होनेवाले पर ही आमादा थी।
धृतराष्ट्र बड़े और अंधे होने की क्यों अनायास घोर अहित सत्ता में बाधा थी।।
पत्नी की गरिमा को जो ना संभाल सके फिर वे कैसे हुए धर्मी प्रज्ञा मंदित हैं।
रक्तरंजित कर से लिखा इतिहास कर दिया विनाशक पर वे क्यों चिर वंदित है।।
देवी तुम यज्ञ वेदी से अवतरित होकर द्रुपद सुता धृष्टद्युम्न की सहभगिनी थी।
तपोबल से पैदा होकर असंख्य ज्योतिशिखा से अनुप्राणित अगिनी थी।।
सत्ता की देखरेख करने का अधिकार वालिद से पांडु काका ने प्रतिफल पाया था।
काका के वनवासी हत होने पर साम्राज्य अधिकार लौट पुनः वालिद पे आया था।।
सुनो वीर कुछ मेरी आज सुनो जो मैं अब तक कह नहीं अभी तक पाया हूं।
मैं कुरु वीर अग्र पुत्र दृष्टि साथ लेकर ही अपने कुलपद वंशज में जाया हूं।।
अपने वालिद का उत्तम अधिकारी संरक्षक पर पांडुपुत्र राज छीन लेने विपक्ष खड़े थे।
होती अनीति तो फिर गुरु द्रोण भीष्म कृपा कृतवर्मा दानी कर्णवीर क्यों साथ खड़े थे।।
पूर्वजों की रजधानी देकर वालिद ने अधिराज बना अनुपुत्रों को स्वीकार किया।
दूध कीड़ा और निज ताकत बल से मधुसूदन से मिल पूरे राज पर लड़ अधिकार किया।।
बात गलत होती तो मधुसूदन के भाई ज्ञानी बलदाऊ भी रणभूमि में क्यों तटस्थ रहे।
दुपद सुता और भीम ने इंद्रप्रस्थ के महलों में लेकर अपमानित करने में व्यस्त रहे।।
इंद्रप्रस्थ के अत:पुर में पग पग अपमानित कर सब राजसी वस्त्र उतरवा डाला।
गर्वित दौलत में चूर द्रुपद सुता और भीम ने मेरे स्वाभिमान पर कीचड़ डाला।।
मेरे निज भाई पांडवों ने द्यूत में हारे राज को मांगने हित माधव से भेजा संदेशा था।
अंगदेश दिया कर्ण को मांगने मिल लेने खुद आते इससे ज्यादा खोता क्या अंदेशा था ।।
छल बल षडयंत्रों से जरासंध, बकासुर और हिडिंब का बंध कर सम्बन्ध बना डाला।
अर्जुन ने सुभद्रा, उलूपी, पांचाली और चित्रा से विवाह कर प्रण विचार बना डाला।।
मेरे प्रिय भ्राताओं ने द्रुपद विराट कृष्ण को संबंधी बना चहुंचोर भय बसा रच डाला।
दुर्योधन मैं कुरुवंशी अपने राज की रक्षित उपक्रम को छलबल विफल कर डाला।।
वर्षों तक वन में पांडवों ने शक्ति संचय कर लेने का पूरा श्रम साध्य कार्य किया।
शिव से लेकर इंद्र आदि से दीक्षित होकर अपने निज कुल गुरु पित्रृ सबसे संग्राम किया।।
अंबा ओट ले पितामह और निशस्त्र कर्ण पर रण में कपट पूर्ण मृत्यु आघात किया।
सरिता तट पे भीमसेन ने युद्धनियम विरुद्ध कर जांघो में प्रहार फिर पदाघात किया।
धर्मराज युधिष्ठिर द्यूत खेल में निज भार्या पर दांव झूठ से गुरु को मात दिया।
कौन धर्मराज? नहीं कहता रक्तरंजित राज लिए कुल कुलीनों को वैधव्य संत्रास दिया।
कहों पांडवों से राजमहल लेकर शरसय्या में पीड़ित भीष्म को मत देखो और पूजो ।।
मुझे अधर्मी कहने वालों पांडवों से धर्मों की जाके व्याख्या और परिभाषा कुछ पूछो।
मित्र सुनो अश्वत्थामा डर इसी बात का मुझको सत्ता के आगे जग जीवित नतमस्तक होंगे।
कैसे मिली विजय श्री इनको, इतिहास स्वयंभू बन लिखे मुझे दुर्योधन जो सत्तास्वामी होंगे।
– के.एल. महोबिया
अमरकंटक अनूपपुर मध्य प्रदेश