मेघ और दीप्त का….
रिश्ता एक प्रीत का….
स्याह बादल जल भर ..
आवारा क्यूँ बिचरता है..
मिलने को रश्मियां से….
वो भी तो तड़पता है….
एक क्षणिक सा स्पर्श….
और ,तरंगे कड़कती है…
फिर बिछोह की पीड़ा…
संग अपने ढोती है…
इस मिलन की चाह में…
करती है इंतजार …
आए मौसम बारिश का…
खत्म बात गुजारिश का…
बिन मेघ अस्तित्व विहिन…
भूल ताकत रहती क्षीण…
मिलन एक क्षण का….
ये इश्क किस रंग का…
इस मिलन बिछोह की
मूक गवाही देकर….
आखिर !!!!!!!!
वो अंबर भी तो रोता है…❣️
सपना चन्द्रा
कहलगाँव भागलपुर बिहार