ग़ज़ल

चार दानव घरों को जलाते रहे।

लोग आते रहे लोग जाते रहे।

इस अदालत के मुनसिफ तो बहरे बने,

लोग फरियाद अपनी सुनाते रहे।

धर्म वाले यहां धर्म की आग को,

खुद लगाते रहे खुद बुझाते रहे।

लोग भोले न थे लोग नादां न थे,

आग रूई में रख कर छुपाते रहे।

कुछ थे जिन की फितरत में धोखे लिखे,

कुछ ज़माने को उंगली लगाते रहे।

जब भी मौका मिला उम्र की राह में,

खुद भी संभले, गिरे को उठाते रहे।

ज़िंदगी में अगर वेवफा मिल गया,

दूर रह कर भी उन से निभाते रहे।

ज़िंदगी क्या हैघ् हम से कोई सीख ले,

चोट खा कर भी हम मुस्कुराते रहे।

ज़िंदगी गीत के बिन हमें है मिली,

फिर भी  ‘बालम’ इसे गुनगुनाते रहे।

बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)

मोबाईल: 9815625409