“रोक-रोक साइकिल रोक, रवि! जिस सिनेमा हॉल का नाम बताया था, वही है।” दोनों सिनेमा हॉल के सामने उतरे।
“भाई शंकर! 2017 की भोजपुरी फिल्म ‘मेहंदी लगा के रखना’ उतरी नहीं क्या? देखी हुई फिल्म दोबारा से देखनी होगी?” रवि हँसा।“उतर गई होगी, रवि! पोस्टर नहीं उतारा होगा। लॉकडाउन एक, लॉकडाउन दो …। सभी व्यवसाय की कमर ही टूट गई, भैया! घर से निकल ही नहीं सकते, तो मनोरंजन की कौन सोचे।”
“अंदर चल, काम पर ध्यान दे! हमें यहाँ बतियाने नहीं आए हैं।”सिनेमा हॉल के प्रवेश द्वार के पास खड़े एक मूँगफली-भाजे वाले ने उन्हें टोका, “लोकल आदमी हो। जानत नहीं कि सिनेमा हॉल बंद है!”
“दिखता है काका! आँख टनाटन है। पर आप खड़े किसको भूँजा बेच रहे हैं, भूत प्रेत को?” रवि ठठा के हँसा।
“हम तो दिनभर ठेला ठेलते हैं, जहाँ गाहक मिलें। यहाँ कुछ लोग सुरक्षा, साफ-सफाई को आते हैं। भूँजा, चिनियाबदाम, सत्तू खरीदते हैं। पुरानी जान पहचान है इनसे।”“छोटकन लोगन के बड़ा नुकसान हुआ है भैया! गोलगप्पे वाला, रोल, आइसक्रीम वाला, अमरूद और बेर वाला, अब कोई नहीं दिखता।”गार्ड निकट आकर बातों में शामिल हुया, “कठिन समय है भैया! मालिक कबतक बैठाकर पगार देंगे? बहुत लोगों को हटा दिया है। चौकीदारी, साफ-सफाई, प्रोजेक्टर की देखरेख के लिए कुछ लोग बचे हैं। कुछ दिनों के लिए हॉल खुला भी था। एक सीट छोड़कर सिनेमा देखने बिठाया गया। लगा हालात सुधरेंगे। फिर वही हालत हो गई। दोनों लहरों से जो बचे थे, इस दफा वे भी लपेटे में हैं।”
रवि फिर चहका, “बातें बड़ी-बड़ी, पर सबके चेहरों से मास्क गायब!”गार्ड गरम हो गया, “दिमाग क्यों चाटते हो भाई! हॉल बंद देखा न तो अपना रास्ता नापो!”“नाराज न हो भैया”, शंकर बोला, “हम सिविल कांट्रेक्टर के आदमी हैं। मालिक से पूछ लो। घूमघामकर, देखभालकर सिनेमा हॉल को रीमॉडल करने का बजट तथा जिन चीजों एवं पेशेवरों की आवश्यकता है, उनकी सूची देनी है। दीदी हमारे गाँव की हैं, उन्होंने ही मालिक को यह विचार दिया है। कोरोना 2022 के अंत तक चला जाएगा, उन्हें उम्मीद है। वह हाॅल को रिमाॅडल कर बड़े शहरों के जैसा टिपटॉप बनाना चाहती हैं।”“मालिक कहे थे कि पगार तक नहीं दे पा रहा हूँ, बैंक का कर्जा बहुत बढ़ गया है। इन कामों का खर्चा कहाँ से आयेगा?” हैरान गार्ड का प्रश्न था।
“दीदी मायके से इकलौती और सरकारी बैंक में लगी हैं। ‘स्थितियाँ सामान्य होंगी तो सिनेमा हॉल चलेगा’, इसी उम्मीद में पिता और बैंक की मदद से हिम्मत की है। इधर दूर-दूर तक जितने सिनेमा हॉल थे, अपनी बदहाली से बिल्डरों के हाथ चले गए। दूर-दूर तक यही सिनेमा हॉल बचेगा। हो सकता है कि सुंदर रखरखाव के कारण नुकसान की भरपाई हो जाए, फायदा भी हो।”“हम अहसानमंद हैं मालकिन के। लगा था कि लगातार तालाबंदी से यह हॉल भी बिल्डरों के पास जाने वाला है। कोई बैठाकर कब तक खिलाएगा हमें?” गार्ड ने कहा।सबके चेहरों पर बीते दिनों की सी रौनक के लौट आने की उम्मीद चमक उठी।
#नीना_सिन्हा/पटना।(