शराब सस्ती –
महंगी दियासलाई हुई ।
आम आदमी का –
जीना हराम हुआ ।
ज़िंदगी का रोज़ –
चक्का जाम हुआ ।
झोपड़ियों से –
अब खुशियों की विदाई हुई ।
नून , तेल , लकड़ी –
महंगा आटा हुआ ।
स्वाद अंगूरों का –
यारों ! खाटा हुआ ।
पकवानों की –
घर कभी न मुंह दिखाई हुई ।
खिलौने , बच्चों के –
सपने चूर कर रहे ।
बाज़ार , उन्हें दूर –
बहुत दूर कर रहे ।
महंगी बहुत –
आज पढ़ाई – लिखाई हुई ।
दिन – ब – दिन सस्ता ये –
विलासी जीवन हुआ ।
ग़रीबों का छप्पर –
हर बारिश में चुआ ।
दीन – हीन की –
हर मौसम में पिटाई हुई ।
पेट जिनके भूख़े –
बदन उनके उघड़े हैं ।
रोटियां , उनसे दूर –
पहुंच परे कपड़े हैं ।
मुफ़लिसी में –
पेट की खाल खिंचाई हुई ।
+ अशोक ‘ आनन ‘ +
मक्सी