शिव

वीभत्सता का जो शोर है,

तमस एवं प्रकाश का जो विभोर है,

समग्र में जो विशेष है,

उत्पत्ति और काल में जो शेष है,

शिव है, शिव है।

ज्वलंत में उपस्थित जो राख है,

सृजन में ठहरा जो पतन है,

अखंड और प्रचंड मे जो मोक्ष है,

पार और अपार में जो शांत है।

शिव है, शिव है।

मूल में चिन्घाड़, एकान्त में उजाड़ जो है,

सुख में प्राप्ति, दुख में अभिव्यक्ति जो है,

साम, दाम, दंड और भेद जो है,

काम, क्रोध, लोभ, मोह और मद जो है,

शिव है, शिव है।

#रेखा घनश्याम गौड़