लाडली : —

है   जमाना    बुरा    डर   सताए  मुझे ,

छोड़ दहलीज को मत निकल लाडली |

भूखे   बैठे   कई   राह   में    श्वान   है ,

कब  उन्हें  लाज  औ  शर्म का भान है ,

घूरती   नजरों    से    नौच  लेंगे   तुझे –

कैसे  कह  दे  कि  लगते  वो  इंसान है ,

ले  न  कोई  कहीं  पर  निगल लाडली |

छोड़ दहलीज को मत निकल लाडली ||

जाल   बैठे    शिकारी    बिछाए   हुए ,

असलियत   का  वो चहरा छिपाए हुए ,

उम्र का   भी उन्हें   ख्याल  आता नहीं –

सिर्फ    लगते  हवस  के  सताए   हुए ,

चार   दीवार   में  ही  उछल   लाडली |

छोड़ दहलीज को मत निकल लाडली ||

आबरू   तो उन्हें   इक  खिलौना लगे ,

औरतों   का  उन्हें  तन  बिछौना  लगे ,

मान  मर्यादा  रख कर सभी ताक पर –

रूप  हर  नारी  का  ही  सलौना  लगे ,

ख्वाहिशे अपनी अब ले बदल लाडली |

छोड़ दहलीज को मत निकल लाडली ||

एल एन कोष्टी