लाखों हमनें जाप किए है,

बेटी जन कर पाप किए है।

उत्कंठा के तीव्र ज्वाल पर,

सत्ता लालच के सवाल पर,

मरने  वाले  मर  भी  जाए,

किसने फिर सन्ताप किए है।

बेटी जनकर,,,

घूँट  खून के  कोन  पियेगा,

रावण तो  मदमस्त जियेगा,

संत  बने  कुछ लोग  है बैठे,

किसने इनको शाप  दिए है।

बेटी जनकर,,,,

कौरवों की इस भरी सभा का,

अग़वा  होती  स्वयंप्रभा  का,

भोग  विलासी  सुख भोगे तो,

दोष  सभी अपलाप  दिए  है।

बेटी जनकर,,,

हँसकर  जाती  है  जो घर से,

डरती  हैं  वहशी  मधुकर  से,

गलती किसकी कोन है खोजे,

भीड़ ने  बस  प्रलाप  किए है।

बेटी जनकर,,,

        ~ हेमेंद्र वैष्णव  (लेड़गांव)

                9516529025