बड़ी रे जतनमा से
पढैलहूं हम ललनमा के
कि करके नौकरिया से
पुरा करतै सब सपनमा रे
बड़ी रे जतनमा से
पढैलहूं हम ललनमा के।
ना एगो बहाली निकलै
डोलल कंपनी के दुआरी चलै
देख-देख ओकरा के
छुटै मोर रोदनमा रे ।
बड़ी रे जतनमा से
पढैलहूं हम ललनमा के।
उमर तीस-तेतीस होलै
मौका अब हाथ से गेलै
दिन-रात यही चिंता से
बरसे मोर नयनमा रे
बड़ी रे जतनमा से
पढैलहूं हम ललनमा के।
दिल्ली जायके तैयारी कैलकै
जाके चौकीदारी करतै
कर्जा,महाजन से
फटल जा है सीनमा रे
बड़ी जतनमा से
पढैलहूं हम ललनमा के।
सुना-सुना दुआरी लागै
नै एको रिश्तेदारी आवै
गांव वलन ताना मारे
वियाहवो कब ललनमा के
बड़ी रे जतनमा से
पढैलहूं हम ललनमा के।
🙏🏾🙏🏾
राजीव गाजियाबाद (उ.प्र.)
(मगही कवितागरीब परिवार की
परिस्थिति को बयां कर रहा,
खासकर बिहार जैसे राज्यों की।)