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भोजपुरी गीत के जगत में एक धमाके की तरह नेहा सिंह राठौर का नाम सामने आया है. आज उसके करोड़ों लोग मुरीद हैं और उनके वीडियो सुनने के लिए लोग बेताब रहते हैं. हर टी वी चैनलों पर उसके इंटरव्यू की झड़ी लगी है.नेहा एक नई परिघटना और प्रतिरोध प्रतीक के रूप में सामने आईं हैं. इसके दो मुख्य कारण बताये जा सकते हैं. पहली बात यह कि हाल के उनके गीत चुनाव के संदर्भ में राजनीतिक रूप से अत्यंत प्रासंगिक हैं.दूसरा कारण पिछले समय में आधुनिक भोजपुरी गीतों में भोंडे़पन की धारा से अलग हटकर वह एक नई धारा के निर्माण में लगी हुई हैं.
यह बात उनके राजनीतिक गीतों के साथ-साथ परम्परा से जुड़े हुए उनके गीतों के लिये भी कहा जा सकता है.जहाँ तक परम्परा से जुड़े हुए गीतों का सवाल है,तो मैं नेहा के अब तक के गीतों को अपना हस्ताक्षर प्रतिष्ठित करने के प्रयास के रूप में देखता हूँ.यह वह ज़मीन है, जिस पर सृजनात्मकता का नया उन्मेष देखने को मिल सकता है. नेहा में इसकी सारी सम्भावनायें दिख रही हैं. लेकिन ये सम्भावनायें अभी भी भविष्य के गर्भ में हैं.परम्पराओं से प्रेरणा लेना, उत्कर्ष के ज़रिये उन्हें आज के दौर में रोपते हुए नये मानक तैयार करना एक कठिन काम है.
कबीर से शुरू हुई इस परम्परा की पराकाष्ठा हमें भिखारी ठाकुर में देखने को मिलती है.भोजपुरी के भूगोल में वामपंथी आन्दोलन के तहत जनगीतों का सिलसिला भी शुरू किया गया है, जिसकी मिसाल के रूप में गोरख पांडेय के गीतों का उल्लेख किया जा सकता है.नेहा अभी उस विमर्श से दूर हैं,लेकिन ज़्यादा दूर नहीं हैं ।
दूसरी बात यह है आज के दौर में भोजपुरी में राजनीतिक गीतों का एक पक्ष है, डीजे आश्रित भोंडे़ गीतों का एक लोकप्रिय पक्ष है,पुरानी लोक परम्परा को फिर से जगाने का एक दुर्बल पक्ष भी है.नेहा के राजनीतिक गीत हैं, वे तात्कालिक प्रश्नों से जुड़े हुए हैं.उसके परम्परा से जुड़े हुए गीत हैं, जिनमें लोक पक्ष की प्रधानता है.
इस सिलसिले में उसे याद रखना पड़ेगा कि भोजपुरी की परम्परा सिर्फ़ लोक की नहीं, जन की भी परम्परा है.और जन की परम्परा तात्कालिक प्रश्नों से परे समय की एक व्यापक परिधि को छूती है, जिसकी वजह से आज भी वह लोकप्रिय और प्रासंगिक बनी हुई है.मुझे आशा ही नहीं, विश्वास है कि नेहा की रचना यात्रा में ये दोनों पक्ष जैविक रूप से आपस में जुड़ेंगे.और वे तभी आपस में जुड़ेंगे, जब परम्परा को संग्रहालय की अलमारी में बेशकीमती ऐंटिक के प्रदर्शन के बदले, उसे आज के दौर में जीवन्त प्रतिभास के रूप में प्रतिष्ठित करने की कोशिश की जाएगी.
नेहा सिंह राठौर के गीतों को मैं तीन अलग-अलग धरातलों पर देखता हूँ.’यूपी में का बा ‘ उनके पिछले राजनीतिक गीतों से कहीं ज़्यादा, बल्कि भयानक रूप से लोकप्रिय हुआ है.चुनाव हो जाने के बाद उसकी लोकप्रियता ख़त्म हो जाएगी. हो सकता है कि आने वाले समय में उनका कोई राजनीतिक गीत इससे भी ज़्यादा लोकप्रिय हो, शायद न हो. महत्वपूर्ण बात अपने समय के फ़ौरी सवालों में रचनात्मकता के साथ दखलंदाज़ी का है.
यह जारी रहनी चाहिए. इसके आयाम का विस्तार होना चाहिए.भोजपुरी के सांस्कृतिक वैभव की रक्षा के लिये नेहा सक्रिय हैं. यह एक सांस्कृतिक-राजनीतिक कार्यक्रम है. भोजपुरी जगत में इसकी बेहद ज़रूरत थी, ज़रूरत है. मेरी ओर से बधाइयाँ !
तीसरा धरातल मेरे विचार में सबसे महत्वपूर्ण है. नेहा ख़ुद को भोजपुरी की समृद्ध परम्पराओं से जुड़ी हुई महसूस करती हैं,उनके गीतों में से साहित्य झाँकता है. ज़मीन की सोंधी महक के साथ उस साहित्य की रचना – समृद्ध परम्पराओं की धारा में – आज के यथार्थ की ज़मीन पर – अपनी रचनात्मकता की सम्भावनाओं को खंगालते हुए – उस प्रक्रिया के दर्द, उसकी तड़प को महसूस करते हए – अंततः उसके उत्कर्ष तक.यह ‘यूपी में का बा ‘ जैसे गीतों की लोकप्रियता से थोड़ा ज़्यादा है. यह अपने अन्दर इतिहास के स्पंदन को, उसकी निरन्तरता को, आजके दौर में उसके तात्पर्य को समझने का सवाल है. क्या नेहा यह कर पाएगी? क्या पता? शायद नहीं. लेकिन अगर कर पाती है, तो यह बहुत-बहुत बड़ी बात होगी.
साभार – जर्मनी से प्रसिद्ध लेखक और अनुवादक उज्ज्वल भट्टाचार्य,संपर्क – अनुपलब्ध
प्रस्तुकर्ता – बी एम प्रसाद,द्वारा अंधश्रद्धा उन्मूलन पटल,संपर्क – 94151 50487
संकलन – निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र,