डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657
कहते हैं जब जमाना किताबें पढ़ना छोड़ दे तो उसे कुत्ते के भौंकने में भी ज्ञान दिखायी देता है। इधर-उधर की बातें लेकर रातों रात हंगामा बरपाने वाले कमअक्ली डकैतों की फौज से देश को अपने तरह के दर्शन में रंगने का अवसर नहीं गंवाते। न जाने ये लोग किन स्कूलों से पढ़कर आ जाते हैं जहाँ की अक्षरमाला ज्ञान के बदले फूट और अंक केवल आतंक मचाने को ही शिक्षा मानने पर उतारू हो जाती है। ऐसे लोग बड़ा तो करना चाहते हैं, लेकिन शार्टकर्ट से। और शार्टकर्ट के रास्ते में कुछ भी पड़ता हो लेकिन मेहनत का नामोंनिशान नहीं होता। जैसे-तैसे चाहे जैसे अपना उल्लू सीधा करना ही इनका गुरुमंत्र होता है। ये लोग शोहरत पाने के लिए अंगारों में हाथ डालते जरूर है लेकिन अपने नहीं दूसरों के। जोड़ने और तोड़ने में बहुत फर्क होता है। तोड़ना सिर्फ जुदा करने का नाम नहीं, जोड़ने वाले को कुचलकर आगे बढ़ने का नाम है।
जो लोग हिंदू धर्म का एबीसीडी नहीं जानते वे दुनिया के सामने वेबसीरिज के बहाने धर्गगुरु बन बैठने का एक नया धंधा बना रखा है। जब धर्म में भलाई की जगह बुराई ढूँढ़ना शुरु कर देते हैं तब समझ जाना चाहिए कि यह हरकत कोई कचरा आदमी ही कर सकता है। शैव दर्शन को शेव करना जितना आसान समझने वाले शिव तांडव में अपना कमर्शियल तांडव का तड़का लगाने से बाज नहीं आते। पैसा और शोहरत बटोरने के नाम पर हाल ही में आये ‘तांडव एंड डामा टीम ने’ शिव भगवान का रोल कुछ ऐसा किया जैसे वह शिव को शिव नहीं जेब में रखी पुड़िया समझता है। नारद मुनि बने एक छात्र के माध्यम से यह कहलवाना कि हे प्रभु आजकल सोशल मीडिया पर राम के भक्त बढ़ गए हैं। तो इस पर शिव और राम के बीच भारत-पाकिस्तान की दुश्मनी सरीके शिवजी कहते हैं ओह! तो मैं क्या अपनी फोटो बदल दूँ। सभी छात्र जोर जोर हँस कर ताली पीट रहे हैं। और फिर शिवजी के मुँह से निकलता है व्हाट द! …. । और फिर सभी आज़ादी आज़ादी के नारे लगाने लगते हैं। शिवजी कहते हैं जब मैं सो रहा था तब तो आज़ादी कूल था अब क्या हुआ। फिर वो कहते है कि हमें देश से आज़ादी नही, समान्तवाद से आज़ादी, अत्याचार से आज़ादी इत्यादी-इत्यादी चाहिए।
भारतीय संविधान ने सभी को अपनी बात रखने की आजादी है। इसका मतलब यह नहीं कि आजादी का उपयोग किसी की ठेस पहुँचाने का सबब बन जाए। चार टके के कल के छोकरे सिर्फ आजादी ढूढ़ते हैं… आंखें बंद करते हैं तो आजादी… और जब आंखें खोलते हैं तो आजादी!! आजादी आजादी न हुई उनकी दाल-भात का कौर हो गयई। सच तो यह है कि आजादी को समझने के लिए पहले धर्म के ज्ञान में बंधना सीखो। तब कहीं आजादी का मतलब समझ में आएगा। यूँ ही आजादी-आजादी चिल्लाकर किसी की भावनाओं का मजाक उडाना रक्त चाप में दबाव बढ़ा सकता है, लेकिन रक्त को अंधज्ञान की भक्ति से मुक्त नहीं करा सकता।