फागुन बौराए”

साख पर नव  पल्लव लग आए,

नभ में डोले वादल इतराये,

बाग मेंं कोयल कूक सुनाये,

सखी,हृदय मेंं फागुन बौराए।

फिर प्रीत का मौसम छाए,

पवन वैठ सिराहने नव गीत सुनाये,

नव पुष्प सूनी साख पर इठलाये,

सखि हृदय मेंं फागुन बौराए।

तामसी रजनी मेंं नक्षत्र विखरे,

पडे़ है टिम टिमाये…

चाँदनी अवगुठंन से देखती,

शशि को आँख चुराये,

पग पग धरती धरणी भी,

विकसित होती प्रकृति को

देखती मंद मंद मुस्काये,

सखी,हृदय मेंं फागुन बौराए।

 सूनी साख पर प्रफ्फुलित टेसू पुष्प,

हृदय मेंं अनुपम अनुराग जगाये,

भंबरे भी फूलों का मकरन्द लिए,

प्रकृति के गुण गान गाये,

यह सकल वातावरण हृदय मेंं,

आंछादित हो नव अहसास जगाये,

सखी,हृदय मेंं फागुन बौराए।

          यू.एस.बरी

लश्कर,ग्वालियर,मध्यप्रदेश