#अहसान

मैं इस आदमी की कुछ नहीं लगती..सुना आपने…और ये रिश्ते की दुहाई देना बंद करो आप मुझे.

स्वरा ..जिसके स्वर में सुर बहता था..शास्त्रीय संगीत में उसने ख्याति पाई थी…आज उसकी आवाज में कठोरता दिख रही थी.

जिंदगी उसके सामने ऐसी लकीर खिंचेगी जो आर-या-पार की होगी..सोंचा भी नहीं था.

अचानक से उठे इस एक सवाल ने उसकी जिंदगी में भूचाल ला दिया था.

    “ये कौन है माँ…आप इन्हें यहाँ क्यूँ ले आई है..??”

“आपकी अस्पताल में इतनी जगह तो होती है कि मरीज वहाँ पड़ा रहे. फिर भी.”

स्वरा की माँ रतना सरकारी अस्पताल में नर्स का काम किया करती थी.

कुछ दिन पहले जिस मरीज के देखभाल करने की जिम्मेवारी उसे मिली थी..उस आदमी को कुछ लोगों ने सड़क किनारे जख्मी हालत में पाया था.

लोगों ने उसे पुलिस की मदद से सरकारी अस्पताल पहुँचा दिया था…और..

सीनियर डॉक्टर ने रतना से उस मरीज की देखभाल करने की बात की थी.

    रतना ट्रे में ड्रेसिंग का सामान लिए कमरे में प्रवेश करती हुई…उसकी ओर बिन देखे ही पूछती है.” अब कैसा महसूस कर रहे है.?”

“देखिए! डॉक्टर साहब ने आपकी देखभाल करने को कहा है मुझे…इसलिए अच्छे बच्चे की तरह रहना है.”

रतना की बात सुन वह मरीज हँस पड़ा..मैं और बच्चा ऽऽऽ…”

उस मरीज की जानी-पहचानी आवाज से  रतना चौक पड़ी थी..”येऽऽ..येऽऽ हरीश की आवाज है.”…वह मुड़कर देखती है.

हरीश से रतना की मुलाकात इस तरह होगी …उसने कभी सपने में भी नहीं सोंचा था.

“रतना तुम…? यहाँ इस अस्पताल में काम करती हो..??”

“हाँ..मैं यहाँ काम करती हूँ. जीने के लिए तो कुछ करना ही होगा.”

तभी रतना की फोन की घंटी बजती है…स्वरा ने ये बताने के लिए फोन किया था कि उसे अपने एक दोस्त के यहाँ जाना है.

“स्वरा जल्दी आ जाना…समझी.”…और फोन कट हो गया.

“ये स्वरा कौन है रतना..??”..मेरी बेटी है .रतना ने जबाव दिया.

“ओहह अच्छा.!.और उसके पिता कहाँ है..?”

यहीं पर हैं वो..!!

“अच्छा !.वो भी इसी अस्पताल में हैं..?”

“हाँ !..इसी अस्पताल में है.”

हरीश बिल्कुल गुम सा हो गया…अब उसने कोई और सवाल नहीं किया..

दिन गुजरते रहे..रतना अपना काम करती और चली जाती..उधर हरीश ने भी फिर कभी अपना मुँह नही खोला.

जहाँ उसके बाहरी जख्म सूख रहे थे ..वहीं भीतर का जख्म हरा हो रहा था..

आखिर अस्पताल से जाना का वक्त भी आ गया …डॉक्टर ने उसकी अच्छी हालत देख छुट्टी कर थी..”अब आप घर जा सकते है मि०.हरीश..सब कुछ ठीक है…और सिस्टर रतना …आपकी सेवा बहुत काम आई.”

हरीश घर की बात सुनकर ठहर सा गया था…कौन सा घर …मेरा कोई घर नही.

डॉक्टर से कहे उसके शब्द को रतना ने सुन लिया..

सबकुछ तबाह हो गया मेरा डॉक्टर…शायद किसी की आह लग गई.

हरीश थके कदमों से बाहर निकल आता है..अस्पताल के मेन गेट के पास खड़ा इधर-उधर देखता है…तभी रतना उसके पास आती है…और अपने घर ले जाने की बात करती है.

“नहीं !..नहीं!मैं तुम्हारे घर कैसे जा सकता हूँ…मेरी वजह से तुम्हारा पारिवारिक मामला बिगड़ सकता

है.”.

“तुम्हारे पति और तुम्हारी बेटी ..के कई सवाल होंगे ..क्या जबाव दोगी.”

रतना के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान तैर जाती है…

“ओहह.!.तुमने समझा कि मैंने दूसरी शादी कर ली है..और वो बेटी..ऽऽऽ..

तुम कल भी गलत थे हरीश और आज भी…स्वरा हमारी बेटी है.”

“मैं तो तुम्हें माफ कर चुकी …पर तुम्हारी बेटी जो पिता के होते हुए भी बिना पिता के रही…इसका जबाव कौन देगा.”

हरीश अपने सर को दीवार पर पीटता हुआ पश्चाताप कर रहा था..मैं कैसा बदनसीब पिता हूँ..जो अपने ही हाथों अपनी दुनिया जला ली.

रतना उसे रोकती है..और अपने साथ घर ले जाती है…

दरवाजे पर खड़ी स्वरा अपनी माँ के साथ किसी अजनबी को देख आश्चर्य करती है …”ये कौन है माँ..??”

रतना बोल पाती इससे पहले ही हरीश अपने हाथ जोड़कर कहता है…”मैं तुम्हारा पिता हूँ…तुमदोनों का मुजरिम हूँ…माफ कर दो मुझे मेरी बच्ची.”

“खबरदार.. जो मुझे अपनी बेटी कहा…मैं सिर्फ़ अपनी माँ को जानती हूँ.”

“मैंने आजतक कभी नही पूछा कि मेरे पिता कौन है और कहाँ है…क्यूँकि मैं उन्हें तकलीफ नहीं पहुँचाना चाहती थी…पर जानना जरुर चाहती थी.”

“अक्सर छुपकर माँ को आपके नाम की सिंदूर लगाते देखती….पर मैंने कभी जाहिर नहीं किया.”

रतना स्वरा की बात सुनकर अवाक हो गई थी…”सब जानती थी पर कभी नही पूछा मुझसे..अकेले ही जुझती रही.ओहहहह…मेरी बच्ची.”

“माँ मैं आपका हक नहीं छीनना चाहती..अगर आपने इन्हें लाया है तो कोई वजह भी जरुर होगी.”.

“आपके फैसले से मुझे कोई आपत्ति नही…पर मैं  इनकी कोई नहीं…कभी भी नहीं.”

आपने माफ करके अहसान कर दिया …मुझसे नहीं हो पायगा..

✍️

सपना चन्द्रा

कहलगाँव भागलपुर बिहार