पहाड़ो पर टेसू
रंग बिखर जाते
लगता पहाड़ ने
बांध रखा हो सेहरा |
घर के आँगन में
टेसू का मन नहीं लगता
उसे सदैव सुहाती
पहाड़ की आबों हवा|
मेहंदी की बागड़ से
आती महक
लगता कोई
रचा रहा हो मेहंदी |
पीली सरसों की बग़िया
लगता जैसे शादी के लिए
बगिया के हाथ कर दिए हो पीले |
भवरें -कोयल गा रहे स्वागत गीत
दिखता प्रकृति भी रचाती विवाह|
उगते फूल आमों पर आती बहारें
आमों की घनी छाँव तले
जीव बना लेते
शादी का पांडाल
ये ही तो है असल में
प्रकृति के बाराती |
नदियां कल कल कर
उन्हें लोक गीत सुनाती
एक तरफ पगडंडियों से
निकल रही इंसानों की बारात |
सूरज मुस्काया
धरती के कानों में धीमे से कहा-
लो आ गई एक और बारात
आमों के वृक्ष तले |
संजय वर्मा “दृष्टि “
125 शहीद भगतसिंग मार्ग
मनावर (धार ) मप्र