अपने एक डॉक्टर दोस्त से फोन पर सलाह लेने के बाद हम ऊपर वाले कमरे में आकर खिड़की के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गए । प्रेस को भी खिड़की के ठीक नीचे वाले प्लग में लगा कर उसके गर्म होने का इंतज़ार करने लगे । पिछले कुछ दिन से एक आंख में कुछ सूजन सी हो गई थी । अपने एक डॉक्टर दोस्त को फोन पर अपनी व्यथा बताई तो उसने हमें गर्म कपड़े से सिकाई करने की सलाह दे डाली ।
बच्चों के पास विदेश आए तो उन्होंने विशेष रूप से ऊपर वाला कमरा , जिसमें एक बहुत बड़ी खिड़की थी , हमें ठहरने के लिए दे दिया था । हम अक्सर खिड़की के पास बैठ कर बाहर गुज़रने वाली बड़ी बड़ी महंगी गाड़ियों को देखा करते । खिड़की के बाहर फैला विशाल बेहद नीला आकाश भी हम जैसे दमघोटू शहर के निवासियों के लिए एक वरदान से कम नहीं था । यदा कदा विदेशी युगल सामने वाली साफ सुथरी सड़क पर चहलकदमी करते हुए निकला करते ।
प्रेस काफी गर्म हो गई तो हमने एक रूमाल से सूजी हुई आंख का उपचार प्रारंभ कर दिया । अभी कुछ समय ही बीता होगा कि नीचे किचन से श्रीमती जी का अज़ान से भी ऊंचा स्वर सुनाई दिया ,
” क्या कर रहे हैं ऊपर आप ? “
” आंखें सेंक रहे हैं ” , हमारे मुख से अनायास निकल गया ।
नीचे किचन में बर्तन फेंकने की घनघोर ध्वनि उत्पन्न हुई और साथ ही श्रीमती जी का रौद्र रूप भी ,
” शर्म कीजिए ….शर्म कीजिए ….नाती पोतों वाले हो गए हो , अभी आंखें सेंकने का चस्का नहीं छूटा ? “
हमें जल्दी समझ आ गया कि हमसे मुहावरे का गलत प्रयोग हो गया है । लेकिन तीर कमान से निकल चुका था । जल्दी से सफाई देने की कोशिश की लेकिन हमारी बात पटके जा रहे बर्तनों के शोर में ऐसे डूब गई , जैसे महाभारत के युद्ध में युधिष्ठिर द्वारा अश्वत्थामा के मारे जाने के झूठ का स्पष्टीकरण डूब गया था ।
घबराहट में बेहद गर्म रूमाल दूसरी आंख पर लगा लिया जिससे वह आंख भी सूजकर दिव्यदृष्टि वाली हो गई । उधर नीचे श्रीमती जी ललकार रहीं थीं ,
” आंखें सेंक ली हों तो नीचे आ जाइए , आपकी रोटियां सेंक दूं । “
……और हम समझ नहीं पा रहे थे कि रोटियां कहा है या बोटियां ……….. !!
( रवि ऋषि )
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