स्नेह का बंधन

कितने प्यारे होते ये स्नेह के बंधन, 

सबसे निराले होते ये स्नेह के बंधन।

जुड़ जाते एक बार गर किसी से, 

छुड़ाये न फिर छूटे ये प्रीत किसी से। 

ना जाने कैसी है ये डोर, 

खिचा जाता है मन बस उसी ओर। 

माँ, पिता, भाई, बहन, पति, बच्चे, 

ना जाने है इसके कितने ही रूप, 

पर इन सब में जो सबसे प्यारा, 

उसे कहते हैं दोस्ती का रूप। 

खीच लाते हैं अपने पास ,

चाहे जितनी भी हो दूरी। 

तोड़ नही सकती इसे कोई मजबूरी। 

सच में बड़ा ही अनोखा है ये 

स्नेह का बंधन, 

बंध जाए जो एक बार इसमे, 

फिर ना टूटे वो मरते दम तक। 

स्वरचित् मौलिक रचना      

             वंदना श्रीवास्तव, 

     शिक्षिका

     बहराइच

        उत्तर प्रदेश