गन्नू भाई बूढ़े हो गए

          आईना ना तब झूठ बोलता था,ना अब झूठ बोलता है।तब गन्नू जवान थे।अच्छी जँचती हुई पर्सनालिटी थी।आमदनी भी अल्लाह के फ़ज़ल से तसल्लीबख्श थी।महिना भी बगैर किसी खलल के बीत जाता था।दो पैसे बचा भी लेते थे।

         उस ज़माने में वे कई शादी के काबिल लड़कियों के माँ-बापों की निगाहों में बतौर दामाद जमे भी थे।कुछेक ने रिश्ते के पैगाम भी भेजे थे।मगर गन्नू इस कान से सुनते और उस कान से निकाल देते थे।वाल्दैन इसरार करते थे “,बेटा, शादी कर के घर बसा ले।हम भी बहू और पोते-पोतियों की शक्ल देख लेंगे।”मगर गन्नू कमीज की कॉलर ऊंची किए ,जूते फ़टफटाते हुए साइकिल पर आड़े तिरछे ,ऊंचे-नीचे होते हुए दोस्तो के साथ निकल लेते थे।  कुलजमा यह कि गन्नू ने वह गोल्डन पीरियड निकाल दिया,जब शादी के बाजार में उनकी खासी पूछपरख थी।उस ज़माने में उनकी ज़हनियत उस मोहतरमा की तरह थी ,जो साड़ी की दुकान पर यही रट लगाए होती है “,भय्या,वो नीली वाली दिखाओ।वह बेलबूटे वाली दिखाओ।”आखिर में बेचारा दुकानदार हाथ जोड़कर कहता है”,मैडम, मेरी दुकान में जितनी भी साड़ियां थीं,सब दिखा चुका।”

         वक़्त के दुकानदार ने जितनी भी लडकियां थीं गन्नू को दिखा दीं।गन्नू के मिज़ाज़ ही नहीं मिलते थे।खैर,बरसों बीत गए।ऐसा वक़्त भी आया जब आईने ने ऐलान कर दिया “,गन्नूजी,अब आप आउट ऑफ डेट हो गए हैं।वक़्त के मुंशी ने आपके चेहरे के बहीखाते पर अब क्रॉस के निशान लगाना शुरू कर दिया है।अब आप जाने और आपका काम है।”

        वक़्त के बीतने के साथ बहुत कुछ बीतता चला गया।गन्नू के माता-पिता ने खुदागंज की टिकट कटवा ली।बहने अपने ससुराल चली गईं।गन्नू अब निहायत अकेले रह गए।थोड़े अरसे तक तो तन्हाई को धुंए के छल्लों और चाय की चुस्कियों में उड़ाते रहे। अकेलापन आया मेहमान की तरह था,मगर डट गया घर के मालिक की तरह।माना कि यारो की महफिलें भी मगर कब तक?आखिरकार वह ज़माना भी आ गया कि गन्नू यह नगमा गाने लगे”,दिन ढल जाए हाय रात ना जाय।”

          अब गन्नू की ज़िंदगी तन्हाई की भाँय-भाँय बनकर रह गई।उन्हें लगने लगा कि वाकई में उन्होने बड़ी खता कर दी।वक़्त रहते अपनी दुनिया नही बसाई।अब वे उन दिनों को कोसने लगे जब उनके पांव ज़मीन पर नहीं टिकते थे।अब ज़िंदगी वह उजाड़ खेत बन कर रह गई ,जिसकी जवानी की फसल को वक़्त की चिड़िया चुग गई।लोगो ने सही कहा है कि जिस की आज आप क़दर नहीं कर रहे हो,कल वह अपने अहमियत का एहसास कराएगा।

          बीवी अब गन्नू के लिए बेहद ज़रूरी हो गई थी।अब गन्नू शादी के लिए हाथ -पैर पटकने लगें।मगर अब सब उलटा पुलटा हो गया था।बढ़ती महंगाई के सामने उनकी आमदनी नाकाफी साबित हो रही थी।जिस पर बीवी लाने का हौंसला।सोचते थे, बस,एक बार घर बस जाए फिर सब ठीक हो जाएगा।हिम्मते मर्दा,मददे ख़ुदा।ऐसी बात नहीं कि गन्नू के टच में औरतें नही आतीं थीं।मगर कोई कहती “,तुम्हारी अपनी आमदनी नाकाफी है।क्या तुम खाओगे क्या हमें खिलाओगे।”तो कोई कहती”,तुम्हारे माथे पर छत तक तो है नहीं ।कल को तुम टपक गए तो हम कहाँ रहेंगे?”

           जिनके हौंसले बुलंद होते हैं,वे कभी ज़िंदगी में मात नहीं खाते हैं।चूंकि गन्नू खालिस हिंदुस्तानी थे लिहाज़ा उन्होंने तुकतान भिड़ाई कि यार जब किराए पर ज़माने की सहूलियतें मिल जाती हैं तो एक अदद बीवी कबाड़ना कौन सी बड़ी बात है?नतीजतन गन्नू ने उठापटक शुरू कर दीं।कुछ बुलंदमिज़ाज़ ,जिंन्हे अंग्रेज़ी में बोल्ड कहा जाता है टकराईं।जिनसे गन्नू का सलाह मशविरा भी शुरू हुआ।एक मोहतरमा से मामला फिट भी हो गया कि पांच हज़ार रुपये महीने पर शाम छह बजे तशरीफ़ लाएंगी और आठ बजे रुखसत हो जाएगी।इस मियाद में गन्नूजी को चाय-नाश्ता देगी।चम्पीवम्पी भी कर देगी।दौरान गुफ्तगू वेज नॉन वेज सब्जेक्ट पर भी आपसी तफसिरा हो जाएगा।बस्स इसके आगे लक्ष्मण रेखा शुरु हो जाएगी।

         खैर,मैडम का तयशुदा वक़्त पर  आना -जाना शुरू हो गया।चूंकि यह एक तरह का ड्रामा था, तो अदाकारी भी थी।वह भी आला दर्जे की।गन्नू निहाल हुए जा रहे थे।तयशुदा मासिक भुगतान केअलावा वे दीगर ज़रूरियात भी तुरतफुरत पूरी कर देते थे।सामने वाली भी पूरी संजीदगी से अपने फ़र्ज़ को अंजाम दे रही थी।आलादर्ज़े की अदाकारी की वजह से गन्नू को लगने लगा था कि कि वे तो उसे चाहते ही हैं,वो भी उन्हें चाहने लगी है।लगना लाज़मी भी था,जब वे उसकी गोद में माथा रखकर सो जाते थे तो वह हौले-हौले उनका माथा सहलाने लगती थी।एक दिन का वाकिया है गन्नू मोहतरमा की गौद मे पड़े-पड़े जन्नत की सैर कर रहे  थे कि उन्हें कुछ आसमानी सुल्तानी इल्म हुआ और उनकी किसी ने हौंसला अफजाई की हिम्मते मर्दा मददे ख़ुदा।बस,उन्होंने आव देखा ना ताव कोई नाक़ाबिले बर्दाश्त गुस्ताखी कर दी।मैडम ज्वाला मुखी की मानिंद फटते हुए बोली”,मियां, बुढ़ापे मे ज़्यादा सन्नाओ मत।अपनी हद में रहो।अपनी वाली पर आ जाऊंगी तो बगैर लंगोट के भागते नज़र आओगे।बेहतर होगा कि अब ये आशिकमिजाजी छोड़ो और अल्लाह-अल्लाह करो।”

             यह सुन गन्नू भाई को ऐसा ही 44 हज़ार वाट का झटका लगा जैसा पत्नी की फ़टकार खाकर किसी महाकवि को लगा था।गन्नू ने उसी वक़्त तौबा की।अगले दिन वे चबूतरे पर हाथ मे तस्बीह (माला)लिए हुए नज़र आए।लोग इस नतीजे पर पहुंचे कि आज गन्नू बूढ़े हो गए।

        प्रेषक:-रमेशचंद्र शर्मा,स्वतन्त्र लेखक एवम पत्रकार,42,बहादुरगंज,उज्जैन, मध्यप्रदेश

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