जीवन भर
तिल – तिल कर जोड़ी
इज्जत
एक सधी हुई तत्परता से
कुछ प्रतिबिम्बों की
गुनहगार हो चटक जाती है
दुर्दिन समय
कंटीले रास्तों से
गुजरता हुआ
चौन्क जाता है
एक सधी हुई तत्परता से
नई यात्रा पर निकल
अर्थशास्त्र में खोजते रहते
जीवन की खुशियाँ
पल – पल
समय की छलनी से
पार होकर
सतत जीवन चक्र
भले ही इंसान को
भीतर तक तोड़ना चाहता है
गाहे – ब – गाहे
जीवन के खेल में
पराजित भी हो जाता है
किंतु दिल पर लगी चोट
इंसान को जूझना
और जीतना
सीखा ही जाती है
हुनर का धनी होता है जो
विचारों की अग्नि में
भावनाओं की आहुति
देकर
तपते हुए तेजस्वी- सा
जिन्होंने दिनमणि में
देवता देखा
दिव्य आलोक की शरण में
मिल ही जाता है
उत्सव मनाने का फिर मौका !
● राजकुमार जैन राजन
चित्रा प्रकाशन