कभी तो इश्क सा ठहर जाया करो !!

क्यों जागी-जागी सी रहती हो अक्सर नींदों में भी ,

कभी तो अपने ख्वाबों को भी पास बुलाया करो !!

सुना है कि लिखती हो रोज़ “दुनिया की उलझनें” ,

कभी तो “मन” का भी कुछ तो कह जाया करो !!

ढूंढती रहती हो “उसको” बड़ी ही बेचैनियत से तुम ,

अपने दिल से भी कभी उसका पता ले जाया करो !!

ये तो जगजाहिर है कि “चांद” वो रोज़ दिखता नहीं ,

तो कभी किसी रोज़ “उसका” चांद बन जाया करो !!

भीग जाती हो बरबस उसकी ही “यादों” में हरदम ,

कभी,आंखों से उसकी भी “नमी” पोंछ जाया करो !!

मनसी..क्या पता, इस जहां में रहेंगे कब तलक हम ,

कभी तो “किसी मन” में इश्क़ सा ठहर जाया करो !!

नमिता गुप्ता “मनसी”

मेरठ, उत्तर प्रदेश