शहरों में,
मैं देखता रह गया,
चुपचाप!
दुर्लभ था!
आँधियों के चोट से
बिकता देखा मैंने,
रक्त के एक बूँद!
मैं अकेला क्या कर पाता
रोता चिघरता!
और चिल्लाता!
और क्या??
मेरे बस की बातें नहीं थी
सनसनी चुप करने की
चुपचाप न रहता,
तो और क्या करता!
सिर्फ़ देखने के सिवा
माटी की मूर्तियां ढेर लगी थी
टूटी फूटी,
और बिखरी थी!
पट्टी बंधी थी मेरे आँखों में,
मैं पड़े थे आवास में,
चुपचाप!!!
मनोज कुमार
गोंडा जिला उत्तर प्रदेश
मो. न.7905940410