बदलते जमाने की हवा।
ज़माने को लग गई किसकी नज़र,
मासूम क़ातिल नज़र आने लगे हैं ।
अबोध खिखिलाते नहीं अब खुल के,
ज़माने की बंदिश से हकलाने लगे है।
सूरज भी तपने लगा है बेइंतहा,
परिंदे पंख अब फड़फडानें लगे है।
उलटी बयार सरसरा रही है ऐसी।
पेड़ों में नए पत्ते भी सूखे आने लगे है।l
बेरूखि का ये कैसा हो गया असर
श्रवण कुमार माँ बाप से कतराने लगे हैं।
पश्चिम का परचम फैला है इस कदर।
बच्चे देश के विदेशी कहलाने लगे है।
भूख और लाचारी सर उठाने लगी है संजीव।
अन्न दाता ही अब जहर खाने लगे हैं।
संजीव ठाकुर
रायपुर, छत्तीसगढ़। 9009 415 415