जलवायु संकट के कारण भारत में छाई गर्मी की लहर, छोटे बच्चों के लिए बढ़ा खतरा

नई दिल्ली । मौसम विशेषज्ञों ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि पश्चिम और उत्तर पश्चिम भारत में चल रही हीटवेव अगले 4 से 5 दिनों में देश के बड़े हिस्से में फैल जाएगी। इस दौरान देश भर में गर्मी का कहर देखने को मिलेगा। मार्च का माह भारत के लिए सबसे गर्म महीना साबित हुआ है। विशेषज्ञों ने बताया कि यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का ही एक और संकेत है।
इसकी वजह से करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य के लिए संकट पैदा हो गया है। कोयले और अन्य ईंधन जलाने के कारण पैदा हुई हीटवेव ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के चलते और गंभीर रूप ले लिया है। इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रांथम इंस्टीट्यूट में जलवायु विज्ञान के वरिष्ठ व्याख्याता फ्रेडरिक ओटो ने कहा कि दुनिया में हर जगह हीटवेव के मामले सामने आ रहे हैं। जब तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन समाप्त नहीं हो जाता, तब तक भारत और अन्य जगहों पर हीटवेव गर्म और अधिक खतरनाक होती रहेगी।
मार्च में पृथ्वी के दोनों ध्रुवीय क्षेत्रों ने गर्मी की लहरों का सामना किया। इस दौरान अंटार्कटिका में तापमान औसत से 4.8 डिग्री सेल्सियस गर्म था, जबकि आर्कटिक में औसत सामान्य से 3.3 डिग्री सेल्सियस अधिक था। भारत को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि प्रशांत महासागर, ला नीना में असामान्य प्रभाव पड़ें हैं। बता दें कि ला नीना एक ऐसी स्थिति है, जब पूर्वी और मध्य प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से कम होता है। इस दौरान यह पवन प्रणाली को बदल देता है। यह आम तौर पर सर्दी, कुछ गर्मी पैदा कर के भारत में मानसून लाता है। लेकिन इस साल बसंत के मौसम में यह प्रक्रिया नहीं हुई, जिससे गर्मी बहुत जल्द शुरू हो गई है।
मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुड्डे ने कहा कि भारत में यह घटना ज्यादातर नम सर्दियों से जुड़ी है। इसलिए, भारत में वसंत और गर्मी के दौरान ला नीना का वर्तमान प्रभाव पूरी तरह से अप्रत्याशित है। सीएसई द्वारा विश्लेषण किए गए आईएमडी के आंकड़ों के अनुसार 2022 की शुरुआती गर्मी की लहरें 11 मार्च को शुरू हुईं और 24 अप्रैल तक इसने 15 भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रभावित किया। इससे राजस्थान और मध्य प्रदेश सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम राजीवन का कहना है यह बेहद असामान्य है, इस साल मार्च में एक बड़े क्षेत्र में हीटवेव जल्दी शुरू हुई। अब अगले दो हफ्तों के दौरान उत्तर और पूर्वी भारत के बड़े क्षेत्रों में भीषण गर्मी पड़ने की संभावना है। यह स्थानीय मौसम के कारण नहीं हो सकता है। इसके विश्लेषण की आवश्यकता है। हालांकि राजीवन ने कहा कि इससे मानसून प्रभावित नहीं हो सकता है।
शुक्र है, इस साल अल नीनो का हम पर असर पड़ने की संभावना नहीं है। इस साल या तो ला नीना या ईएनएसओ की नूट्रल स्थितियां बनी रहने की संभावना है, जिससे मानसून को मदद मिलेगी। गौरतलब है कि ईएनएसओ नूट्रल स्थितियां उन अवधियों को संदर्भित करती हैं, जिनमें न तो अल नीनो और न ही ला नीना मौजूद हैं। प्रशांत महासागर में मौसम की ये घटनाएं दक्षिण एशिया में तापमान और वर्षा को प्रभावित करती हैं। आईएमडी के अनुसार, ला नीना की स्थिति मध्य मानसून तक बने रहने की संभावना है।
नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के रिसर्च विंग ने रविवार को ट्वीट किया-ला नीना उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में जारी है, वर्तमान पूर्वानुमान गर्मियों में ला नीना के जारी रहने के पक्ष में है, जिसमें गिरावट की संभावना थोड़ी कम है। कोट्टायम स्थित इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज स्टडीज के निदेशक डीएस पई ने कहा कि ला नीना-ट्रिगर हवा के पैटर्न से आसमान साफ ​​हो जाता है। इसे एंटी-साइक्लोन सिस्टम के रूप में जाना जाता है। इस कारण भी पश्चिमी क्षेत्र से शुष्क औऱ गर्म हवाएं चल रही हैं।