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(संदर्भ- तेजस्वी के इफ्तार में सीएम नीतीश की एंट्री )
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दुआ- ए- इफ्तार कुबूल कीजिए।
शिष्टाचारवश, मुलाकात जरूर कीजिए।
परम्परा है, सेलिब्रेट जरूर कीजिए।
पर,सियासी जमघट है, गालिब!
कोई नई सियासी खेल हो ,
इंकार तो मत कीजिए।।
जी हां। सही सुना आपने। राजनीति संभावनाओं का खेल है। कब, कहां और क्या हो जाए, कहना बड़ा मुश्किल है। ये राजनीति है गालिब जहां कुछ भी संभव है। बस राजनेताओं की स्वार्थ सिद्धी होनी चाहिए कुर्सी के बहाने हुकूमत चलाने की ताकत मिलनी चाहिए। यहां अनुमान लगाना बालू में से तेल निकालने के समान है। दरअसल, बिहार की राजनीति में इन दिनों कुछ ऐसी ही अटकलों का बाजार गर्म है। बाजार गर्म हो भी क्यों ना साहब? सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार,जो अक्सरहां लालू परिवार को कोसते नहीं अघाते हैं, 4 वर्ष बाद अचानक लालू परिवार के दावत-ए- इफ्तार पार्टी में शामिल हुए, वह भी पैदल चलकर। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से गलबहिया किए और गुप्तगू भी। दोनों नेताओं का बाडी लैंग्वेज और गेस्चर एक अलग ही संकेत की ओर इशारा कर रहा था। भले ही इसे एक शिष्टाचार बस मुलाकात या परम्परा निर्वहन माना जा रहा हो लेकिन बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की लालू परिवार के साथ एंट्री एक नए पालिटिकल नैरेटिव को बयां कर रही है । सबके मन में एक ही सवाल उठ रहा है कि क्या बिहार में कैसे बड़े राजनीतिक उलटफेर के आहट है? कोई बड़ा राजनीति खेल होने वाला है? गौरतलब तो है कि लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप और बेटी मीसा भारती ने दावत-ए- इफ्तार के बाद यह कह कर सबको चौंका दिया कि राजनीति है, राजनीति में कुछ भी संभव है और हम सरकार बनाने जा रहे हैं। हालांकि इस दावते इफ्तार में भाजपा, कांग्रेस, लोजपा, वीआईपी सहित कई राजनीतिक दलों के कद्दावर नेता दिखें। भाजपा के शाहनवाज हुसैन ने सदा हुआ बयान दिया कि दावत में किसी के जाने के राजनीतिक मायने नहीं निकाले जाने चाहिए। लेकिन बतौर विश्लेषक मेरा मानना है कि तेजस्वी यादव के इस इफ्तार पार्टी की टाइमिंग बेहद निर्णायक और रणनीतिक है। राबड़ी आवास पर यह राजनीतिक जमघट गृह मंत्री अमित शाह के बिहार दौरे के पूर्व संध्या पर हुआ है इसलिए इसमें कोई- न- कोई राजनीतिक संदेश जरूर छिपा है। यूं ही इन दिनों जनता दल यू और बीजेपी के बीच चल रही तनातनी एवं बोचहां उपचुनाव में मिली चुनावी जीत के बाद आरजेडी नए सियासी समीकरण गढ़ने में मशगूल है। नीतीश की जनता दल यू और तेजस्वी के आरजेडी को स्पष्ट पता है की बड़ी मछली देर- सबेर छोटी मछली को खा ही जाती है। राजनीतिक गलियारे में यह मत्स्य न्याय एक कॉमन फिनोमेना है। अब देखना दिलचस्प होगा कि दावत-ए- इफ्तार के बहाने जो पॉलिटिकल नैरेटिव डिवेलप हुई है वह कोई नया राजनीतिक समीकरण तय करती है या फिर दुआ और खुशी को बढ़ाने का काम बिहार की सियासी फिजां में करती है।
डॉ.हर्ष वर्द्धन
पटना बिहार
9334533586.