“होने” में..उतना ही थोड़ा और होना ,
तेरे चुप में.. थोड़ा और चुप रहना ,
तेरे लिखे में.. स्वयं को ज़रा और ढूंढना ,
उलझना..बिखरना..सिमटना.. ज़रा और आसान होना,
कभी खुद से..कभी तुझसे..कभी वक्त से
यूं बार-बार नाराज़ सा होना ,
कभी बेफिकर..तो कभी यूं ही परेशान होना ,
कभी ज़मीं..तो कभी एक ही पल में आसमां होना ,
कभी, जैसे कुछ भी नहीं..कभी बेइंतहा, बेशुमार होना ,
सुनों जिंदगी..
जिएं जाएंगे संग तुम्हारे..यूं ही..इसी तरह अंत तलक
कि इस जनम के बाद.. चाहेंगे तुझी से आग़ाज़ होना !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
मेरठ , उत्तर प्रदेश