अंधेरे में होगी रोशनी आग जलाकर देखना।
हर सूं होगी हरियाली बशर पेड़ लगाकर देखना।।
खुद ही आलस को अपना दुश्मन बना कर के देख ले।
वीराने भी बोल उठेगे, बस्ती बसाकर देखना।।
क्यों उदास हैं बशर बता तो जरा किस बात का है गम।
मन चिता मीठा सा कोई गीत गुन गुनाकर देखना।।
सबने कहा ये इश्क है बशर ला ईलाज बीमारी।
दीवाने तूं चाहे जितनी दवा करा कर देखना।।
निकल आएंगे पहले की तरह कुछ चाहने वाले।
अपनी यादों के ऊपर जमी धूल उड़ा कर देखना।।
इस दौर की क्या कहिए दुनियां में बहुत दुखी है लोग।
बेबात ही अपने लोगो को तूं हसा कर देखना।।
मानने लगेगे सब नेता एक दिन कोशिश तो कर।
अपने लोगो को कभी सब्ज बाग दिखाकर देखना।।
लाखों है यूं तो आजकल अमन के पैरोकार यहां।
कभी किसी को यकायक यूं ही आजमाकर देखना।।
गज़ल का हरेक शेर मोजू है मेरा पढ़ो तो मियां।
अपनी नजरे करम एक बार इधर दौड़ा कर देखना।।
कोई नही है पराया जग में जन्म से ऐ मनोहर।
प्यार से हरेक रिश्ता गैरों से निभा कर देखना।।
कवि मनोहर सिंह चौहान मधुकर
जावरा जिला रतलाम मध्य प्रदेश