प्रकाशन हेतु कविता।

शीर्षक : ज़िन्दगी

इम्तिहान ही तो है ज़िन्दगी

कभी सुबह तो 

कभी शाम ही तो 

है ज़िन्दगी।

कभी चेहरे पर हँसी

कभी उदासी

कभी लहलहाते खेत खलिहान

तो कभी पतझड़ का 

नाम ही तो है ज़िन्दगी।

कभी गिरना

कभी सम्भलना

इसी का नाम ही तो है ज़िन्दगी।

समुद्र की लहरों की तरह 

उतार-चढ़ाव 

तो कभी ठहराव ही तो है ज़िन्दगी।

माँ का दुलार

पिता की डांट

कभी गर्म हवाएं

तो कभी पेड़ की घनी छांव 

ही तो है ज़िन्दगी।

मुस्कुराकर आगे बढ़ने का 

नाम ही तो है ज़िन्दगी

हर पल एक नया

इम्तिहान ही तो है ज़िन्दगी।

डॉ० दीपा

असिस्टेंट प्रोफेसर 

दिल्ली विश्वविद्यालय