राजीव गांधी के हत्यारे की याचिका पर राष्ट्रपति के फैसले की भी प्रतीक्षा नहीं करेगा कोर्ट

नई दिल्ली । देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में तीन दशक (30 साल) से जेल में सजा काट रहे ए.जी. पेरारिवलन की याचिका पर सर्वोच्च अदालत ने काफी तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि संविधान के खिलाफ कुछ हो रहा हो तो आंख मूंदकर नहीं रहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह राष्ट्रपति के फैसले की भी प्रतीक्षा नहीं करेगा। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट इस बात से नाराज है कि पेरारिवलन को रिहा करने के राज्य मंत्रिमंडल के फैसले के बाद भी राज्यपाल ने फाइल राष्ट्रपति को भेज दी। जबकि सुप्रीम कोर्ट का साफ कहना है कि इस फैसले को मानने के लिए तमिलनाडु के राज्यपाल बाध्य हैं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह मामले में न्यायिक फैसला देगा और पेरारिवलन की याचिका पर आदेश जारी करेगा क्योंकि वह पहले ही 30 साल से ज्यादा समय जेल में गुजार चुका है और उसका आचरण अच्छा रहा है। पीठ ने केंद्र को अगले सप्ताह तक जवाब देने का निर्देश दिया। संविधान के खिलाफ अगर कुछ हो रहा है तो हम अपनी आंखें मूंदकर नहीं रह सकते। हमें अपना बाइबल यानी संविधान का पालन करना है।
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की साजिश में शामिल होने के आरोप में पेरारिवलन को 1991 में मौत की सजा सुनाई गई थी। उसे 9 वोल्ट की बैट्री उपलब्ध कराने का दोषी पाया गया था, जिसका इस्तेमाल राजीव गांधी की हत्या के लिए बनाए गए विस्फोटक में हुआ था। 20 साल जेल में काटने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बी. आर. गवई की पीठ ने केंद्र से कहा कि राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत तमिलनाडु की मंत्रिपरिषद की ओर से दी गई सलाह मानने के लिए बाध्य हैं। पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज से कहा, ‘इस बारे में फैसला अदालत को लेना है, राज्यपाल के फैसले की जरूरत भी नहीं है। वह मंत्रिपरिषद के फैसले के प्रति बाध्य हैं। हमें इस बारे में देखना होगा।’ मंत्रिमंडल ने 2018 में ही दोषी को रिहा करने का सुझाव दिया था।
नटराज ने कहा कि राज्यपाल ने फाइल राष्ट्रपति को भेज दी है। उन्होंने कहा, ‘अगर राष्ट्रपति इसे (दया याचिका को) वापस राज्यपाल को भेज देते हैं तो इस मुद्दे पर बात करने की जरूरत ही नहीं है। राष्ट्रपति खुद फैसला करेंगे कि राज्यपाल उन्हें फाइल भेज सकते हैं या नहीं। फाइल भेजा जाना सही है या नहीं, यह निर्णय पहले राष्ट्रपति द्वारा लिया जाना चाहिए।’ केंद्र के इस तर्क से नाराज शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हम उसे जेल से रिहा करने का आदेश देंगे क्योंकि आप मामले के गुण-दोष पर चर्चा करने को तैयार नहीं हैं। हम ऐसी किसी बात पर आंख नहीं मूंद सकते जो संविधान के खिलाफ हो। कानून से ऊपर कोई नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘हमें लगता है कि कानून की व्याख्या करने का काम हमारा है, राष्ट्रपति का नहीं।’ कोर्ट ने स्टेट कैबिनेट के सुझावों के बावजूद फाइल राष्ट्रपति को भेजना प्रथमदृष्टया गलत पाया और कहा कि भारत के फेडरल स्ट्रक्चर के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 10 मई को अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।
शीर्ष अदालत ने एएसजी की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि दया याचिका की फाइल हाल में उनके पास आई। पीठ ने कहा कि केंद्र के पास दया याचिका की फाइल राज्यपाल को लौटाने के लिए पर्याप्त समय था। पीठ ने कहा, ‘वह (पेरारिवलन) रिहा होना चाहता है क्योंकि 30 साल से अधिक समय वह जेल में बिता चुका है। हमने पहले भी उम्रकैद के सजायाफ्ता कैदियों के पक्ष में फैसले सुनाए हैं जो 20 साल से अधिक सजा काट चुके है। अपराध कुछ भी हो, इस मामले में कोई भेदभाव नहीं हो सकता।’ शीर्ष अदालत ने कहा, ‘उसने जेल में रहते हुए कई शैक्षणिक योग्यताएं हासिल की हैं। जेल में उसका आचरण अच्छा है। जेल में कई साल से रहते हुए उसे कई बीमारियां भी हो गई हैं। हम आपसे उसकी रिहाई के लिए नहीं कह रहे। अगर आप इन पहलुओं पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं तो हम उसकी रिहाई का आदेश देने पर विचार करेंगे।’
तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि दया याचिका पर राष्ट्रपति के फैसले का इंतजार करने की केंद्र की दलील पूरी तरह बेतुकी है और संघवाद की अवधारणा को झटका लगेगा। पेरारिवलन की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि हर बार राज्यपाल ने इस विषय पर फैसला नहीं करने का कोई न कोई ‘बहाना’ बना दिया। एएसजी ने इस दलील पर आपत्ति जताते हुए कहा कि राज्यपाल मामले में पक्ष नहीं हैं। पिछले साल पेरारिवलन को माफी और जेल से बाहर आने को लेकर अनिश्चितता पैदा हो गई थी जब राज्यपाल ने उसके आवेदन पर फैसला लेने से इनकार करते हुए इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया था। दोषी ने दिसंबर 2015 में गवर्नर के पास दया याचिका भेजी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में गवर्नर से दया याचिका पर निर्णय लेने को कहा क्योंकि वह उसके दायरे में आता था। उसी महीने में राज्य सरकार ने गवर्नर को सभी सातों दोषियों को माफी देने का सुझाव दिया था।